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पाठ्यक्रम का अर्थ परिभाषा एवं प्रकार

पाठ्यक्रम का अर्थ परिभाषा एवं प्रकार

Meaning definition and types of curriculum

Paathyakram ka arth paribhaasha evan prakaar

 

प्रश्न – पाठ्यक्रम का अर्थ ,परिभाषा एवं प्रकार का वर्णन करे ?

उतर –

(01) पाठ्यक्रम का अर्थ

(MEANING OF CURRICULUM)

‘पाठ्यक्रम’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘करीक्यूलम’ (Curriculum) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘करीक्यूलम’ शब्द लैटिन भाषा से अंग्रेजी में लिया गया है तथा यह लैटिन शब्द ‘कुर्रेर’ से बना है। ‘कुर्रेर’ का अर्थ है ‘दौड़ का मैदान। दूसरे शब्दों में ‘करीक्यूलम’ वह क्रम है जिसे किसी व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है। अतः पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा शिक्षा व जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। यह अध्ययन का निश्चित एवं तर्कपूर्ण क्रम है, जिसके माध्यम से शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा वह नवीन ज्ञान एवं अनुभव को ग्रहण करता है। शिक्षा के अर्थ के बारे में दो धारणाएँ हैं-पहला प्रचलित अथवा संकुचित अर्थ और वास्तविक या व्यापक अर्थ । संकुचित अर्थ में शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय दूसरा ज्ञान तक ही सीमित होती है, तद्नुसार संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम भी केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित है, परन्तु विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वह सभी अनुभव आ जाते हैं जिसे एक नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्राप्त करती है। साथ ही विद्यालय में रहते हुए शिक्षक के संरक्षण में विद्यार्थी जो भी क्रियाएँ करता है, वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आती हैं तथा इसके अतिरिक्त विभिन्न पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ भी पाठ्यक्रम का अंग होती हैं। अतः वर्तमान समय में ‘पाठ्यक्रम’ से तात्पर्य उसके विस्तृत स्वरूप से ही है।

पाठ्यक्रम के अर्थ को और अच्छी तरह समझने के लिए हमें शिक्षा के विकास पर भी एक दृष्टि डालनी आवश्यक है। आदिकाल में शिक्षा का स्वरूप पूर्णतया अनौपचारिक होता था अर्थात् शिक्षा किसी विधि एवं क्रम से बँधी हुई नहीं थी। उस समय बालकों की शिक्षा उनके परिवार एवं समाज की जीवनचर्या के मध्य चलती रहती थी तथा बालक उसमें भागीदार बनकर प्रत्यक्ष अनुभव एवं निरीक्षण के माध्यम से तथा अपने बड़ों एवं पूर्वजों के अनुभव सुनकर शिक्षा प्राप्त करता था, किन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव के ज्ञान राशि के संचित कोष में निरन्तर वृद्धि होती गई तथा मनुष्य के जीवन में जटिलताएँ एवं विविधताएँ आती गईं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के पास समय और साधन का अभाव होने लगा तथा उसकी शिक्षा अपूर्ण रहने लगी। अतः प्रत्येक विकासशील समाज ने अपने बालकों को समुचित शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से इसे विधिवत् एवं क्रमबद्ध बनाने के प्रयास प्रारम्भ किये। विद्यालयों का उद्भव तथा उनकी स्थापना इन्हीं प्रयासों का परिणाम हैं। इस प्रकार समाज जो उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ज्ञान अपने बालकों को समुचित ढंग से नहीं दे पा रहा था उसने उसकी जिम्मेदारी अनुभवी विद्वानों को सौंप दी। इन विद्यालयों द्वारा बालकों को जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा उन्हें समुचित ढंग से शिक्षा प्रदान करने हेतु जो ज्ञानराशि निश्चित एवं निर्धारित की गई तथा की जाती है उसे ही पाठ्यक्रम का नाम दिया गया है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम अध्ययन का ही एक क्रम है, जिसके अनुसार चलकर विद्यार्थी अपना विकास करता है। अतः यदि शिक्षा की तुलना दौड़ से की जाए तो पाठ्यक्रम उस दौड़ के मैदान के समान है जिसे पार करके दौड़ने वाले अपने निश्चित लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं।




(02) पाठ्यक्रम के परिभाषाऐ 

 

(01) मुनरो के अनुसार–
“पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है । ”

(02) क्रो एण्ड क्रो के अनुसार–
“पाठ्यक्रम में सीखने वाले या बालक के वे सभी अनुभव निहित होते हैं, जिन्हें वह विद्यालय या उनके बाहर प्राप्त करता है। ये समस्त अनुभव एक कार्यक्रम में निहित होते हैं, जो उनको मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक व नैतिक रूप में विकसित होने की सहायता देते हैं।”

(03) पेन के अनुसार–
“पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी परिस्थितियाँ आती हैं जिनका प्रत्यक्ष संगठन और चयन बालकों के व्यक्तित्व में विकास लाने तथा व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु विद्यालय करता है ।”

(04) कनिंघम के अनुसार–
“पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपने पदार्थ (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपने कक्षा-कक्ष (स्कूल) में ढाल सके।”

(05) एनन के अनुसार–
“पाठ्यक्रम पर्यावरण में होने वाली क्रियाओं का योग है।”

(06) हेनरी जे. ओटो के अनुसार–

“पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा हम बच्चों को शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के योग्य बनाने की आशा करते हैं।

(07) शिक्षा आयोग के अनुसार–
“विद्यालय की देखभाल में उसके अन्दर तथा बाहर अनेक प्रकार के कार्य-कलापों से छात्रों को विभिन्न अध्ययन अनुभव प्राप्त होते हैं। हम विद्यालय पाठ्यक्रम को इन अध्ययन अनुभवों की समष्टि मानते हैं । ”

(08) माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार–
“पाठ्यक्रम का अर्थ केवल शास्त्रीय विषयों से नहीं है जिनको विद्यालय में परम्परागत ढंग से पढ़ाया जाता है बल्कि इसमें अनुभवों की सम्पूर्णता निहित है, जिनको बालक बहुत प्यार की क्रियाओं द्वारा प्राप्त करता है जो विद्यालय, कक्षा-कक्ष, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, वर्कशॉप, खेल के मैदान तथा छात्रों एवं शिक्षकों के मध्य होने वाले अनेक औपचारिक सम्पर्कों में होती रहती है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो बालकों के जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श कर सकता है और सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता प्रदान कर सकता है।”




(03) पाठ्यक्रम के प्रकार

Pathyakram ke prakar

(01) बाल केंद्रित पाठ्यक्रम (Child Centred Curriculum)
(02) विषय केंद्रित पाठ्यक्रम (Subject Centred Curriculum)
(03) कार्य / क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम (work/activity centred curriculum)
(04) अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम (Experience centred curriculum)
(05) शिल्पकला -केंद्रित पाठ्यक्रम (Craft Centred curriculum)
(06) कोर पाठ्यक्रम (core curriculum)

01. बाल केंद्रित पाठ्यक्रम (Child Centred Curriculum)

बाल केंद्रित पाठ्यक्रम का अभिप्राय उस पाठ्यक्रम से है, जिसका संगठन बालक की प्रवृत्ति, रुचि, रुझान, आवश्यकता आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है अर्थात इस पाठ्यक्रम में विषयों की अपेक्षा बालकों को मुख्य स्थान दिया जाता है ! इस पाठ्यक्रम को हम मनोवैज्ञानिक पाठ्यक्रम भी कह सकते हैं, क्योंकि यह बालक की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं पर आधारित होता है ! इस पाठ्यक्रम में जो भी विषय रखे जाते हैं वे बालकों के विकास के स्तर, उनकी रूचियो, रुझानों एवं आवश्यकताओं के अनुकूल होते हैं ! वर्तमान समय की सभी शिक्षण विधियों में जैसे – मोंटेसरी, किंडरगार्टन, डाल्टन आदि बाल- केंद्रित पाठ्यक्रम पर ही जोर दिया जाता है ! इस प्रयोगवादी विचारधारा पर आधारित है !

02. विषय केंद्रित पाठ्यक्रम (Subject Centred Curriculum) –

विषय केंद्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें विषय को आधार मानकर पाठ्यक्रम को नियोजित किया जाता है ! अथार्त इसमें बालकों की अपेक्षा विषयों को अधिक महत्व दिया जाता है ! इस पाठ्यक्रम का सूत्रपात प्राचीन ग्रीक तथा रोम के विद्यालयों में हुआ ! इस पाठ्यक्रम में विषयों के ज्ञान को पृथक-पृथक रूप देने की व्यवस्था होती है ! इसमें सभी विषयों के अंतर्गत आने वाले ज्ञान को अलग-अलग निश्चित कर दिया जाता है और उसी के अनुसार विभिन्न विषयों पर पुस्तके लिखी जाती है जिनसे बालकों को ज्ञान प्राप्त होता है ! चुकी इस प्रकार के पाठ्यक्रम में पुस्तकों पर बल दिया जाता है ! अतः इसे ‘पुस्तक केंद्रित पाठ्यक्रम ‘ भी कहा जाता है !यह पाठ्यक्रम बालको में रटने की आदत एवं केवल परीक्षा पर ही बल देता है ! परंतु इसमें कुछ लाभ भी है, उदाहरनार्थ, इस पाठ्यक्रम में शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है, पाठ्य-वस्तु पूर्व निश्चित होती है तथा एक से अधिक विषय की पाठ्य-वस्तु को एकीकृत रूप में प्रस्तुत भी किया जा सकता है ! यह एक निश्चित सामाजिक तथा शैक्षिक विचारधारा पर आधारित होता है !

3. कार्य / क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम (work/activity centred curriculum) –

कार्य/ क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम अनेक प्रकार के कार्यों पर आधारित होता है अर्थात इसके अंतर्गत विभिन्न कार्यों को विशेष स्थान दिया जाता है ! बालक को सामाजिक मूल्य के अनेक ऐसे कार्य करने होते हैं जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं ! अतः कार्य -केंद्रित पाठ्यक्रम का अभिप्राय: उस पाठ्यक्रम से है जिसमें विभिन्न कार्यों द्वारा छात्रों को शिक्षा देने की योग्यता होती है ! इन कार्यों व क्रियाओं का आयोजन छात्रों की रुचि, आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है ! कार्यों का चयन शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के सहयोग से किया जाता है ! जॉन डीवी का मत है कि कार्यकेंद्रित पाठ्यक्रम द्वारा बालक समाज उपयोगी कार्यों के करने में रूचि लेने लगेगा जिससे उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होना निश्चित है !

4. अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम (Experience centred curriculum) –

अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम का अभिप्राय उस पाठ्यक्रम से है जिसमें मानव जाति के अनुभव सम्मिलित किए जाते हैं ! दूसरे शब्दों में अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम विषयों की अपेक्षा अनुभव पर आधारित होता है ! इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य बालकों को प्रेरणा प्रदान करना है ताकि वे अपने जीवन को उपयोगी बना सके ! यह भौतिक तथा सामाजिक वातावरण का अधिक -से -अधिक प्रयोग करता है क्योंकि इसमें बालकों को स्वाभाविक ढंग से ‘अनुभव ‘ प्राप्त करने को मिलते हैं ! यही कारण है कि यह पुण्तया मनोविज्ञान पर आधारित होता है अथार्त इसका संबंध छात्रों की रुचियो, आवश्यकता तथा योग्यताओं से होता है !

5. शिल्पकला -केंद्रित पाठ्यक्रम (Craft Centred curriculum) –

शिल्पकला केंद्रित पाठ्यक्रम का अभिप्राय उस पाठ्यक्रम से है जिसमें ‘शिल्प’ व ‘क्राफ्ट’ को बिषय मानकर अन्य विषयों की शिक्षा दी जाती है ; जैसे – कताई, बुनाई, चमड़े तथा लकड़ी के काम आदि को केंद्र मानकर दूसरे विषयों की शिक्षा दी जाती हैं ! इस प्रकार का पाठ्यक्रम संगठन महात्मा गांधी के विचार पर आधारित है कि छात्रों को कुछ ऐसे शिल्पो की शिक्षा दी जानी चाहिए जिनके द्वारा एक तो विद्यालय का खर्च निकल आए तथा दूसरे भविष्य में छात्र इसके सहारे अपनी जीविका भी चला सके ! इस प्रकार यह पाठ्यक्रम ‘करके सीखने’ पर आधारित है जिसके द्वारा छात्र कोई- न -कोई उपयोगी कार्य अवश्य लेते हैं जो उन्हें भविष्य में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना देता है ! इस पाठ्यक्रम के द्वारा शिक्षा प्राप्त करने से छात्रों के मन में श्रम के प्रति आदर उत्पन्न होता है तथा उनके ह्रदय में श्रमजीवियो के प्रति सम्मान व सहानुभूति प्राप्त होती है !

6. कोर पाठ्यक्रम (core curriculum) –

 

कोर / केंद्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें कुछ तो अनिवार्य होते हैं तथा अधिक विषय ऐच्छिक होते हैं ! अनिवार्य विषयों का अध्ययन करना प्रत्येक बालक के लिए अनिवार्य होता है तथा व्यक्तिगत ऐच्छिक विषयों को व्यक्तिगत रूचि तथा क्षमता के अनुसार चुना जा सकता है !यह पाठ्यक्रम अमेरिका का देन है जिसके अंतर्गत प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों प्रकार की समस्याओं के संबंध में ऐसे अनुभव दिए जाते हैं जिनके द्वारा वह अपने भावी जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या को सरलतापूर्वक सुलझाने हेतु कुशल एवं समाजोपयोगी एवं उत्तम नागरिक बन सकता है ! कोर पाठ्यक्रम की आवश्यकता सभी विद्यार्थियों को होती है लेकिन प्रारंभिक स्तर पर विद्यालय में कोर पाठ्यक्रम की अति आवश्यकता है ! माध्यिक स्तर पर विद्यालय के आधे समय में कोर पाठ्यक्रम के कार्यक्रम होते हैं व उच्च शिक्षा स्तर पर इसकी मात्रा और घट जाती है !

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