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शैक्षिक असमानता को दूर करने के सुझाव | Shaikshik asamaanata ko door karane ke sujhaav

शैक्षिक असमानता को दूर करने के सुझाव

COURSE D.El.Ed
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PAPER CODE F-1

 

प्रश्न . शैक्षिक असमानता को दूर करने के कुछ सुझाव बताइये।
उत्तर-शैक्षिक असमानता को दूर करने के सुझाव-

1. समान स्कूल पद्धति-शिक्षा आयोग 1964-66 ने स्पष्ट कहा कि यदि इन बुराइयों को दूर करना है और शिक्षा प्रणाली को सामान्य राष्ट्रीय विकास तथा सामाजिक और राष्ट्रीय एकीकरण का विशेष रूप से एक शक्तिशाली साधन बनाना है, तो हमें लोक शिक्षा की ऐसी स्कूल पद्धति की ओर कदम बढ़ाना चाहिए, जिसकी निम्नलिखित विशेषतायें हों-

(i) जो जाति, सम्प्रदाय, समाज, धर्म, आर्थिक परिस्थितियों और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार किये बिना सभी बच्चों को सुलभ हो ।
(ii) जिसमें अच्छी शिक्षा का अवसर प्राप्त करना, धन या वर्ग पर निर्भर न होकर प्रतिभा पर निर्भर होगा।
(iii) जो सभी स्कूलों में एक समुचित स्तर बनाये रखे तथा कम-से-कम एक युक्तिसंगत संख्या में अच्छे स्तर की संस्थायें सुलभ कराये।
(iv) जिसमें पढ़ाई की कोई फीस नहीं ली जाये।
(v) जो औसत माता-पिता की आवश्यकताओं की पूर्ति करे ताकि उसे इस प्रणाली से बाहर के खर्चीले स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने की आवश्यकता साधारणतः अनुभव न हो ।

 

2. योग्यता के आधार पर शिक्षा-आयोग ने इस बात पर बल दिया है कि अच्छी शिक्षा आर्थिक व्यवस्था अथवा वर्गभेद के स्थान पर नहीं, अपितु योग्यता पर निर्भर करे तथा जहाँ कोई शुल्क न लिया जाये ।

3. पड़ोसी स्कूल – सामान्य स्कूल-प्रणाली अपनाने की दिशा में आयोग ने ‘पड़ोस के स्कूल’ (Neighbourhood school) का सुझाव दिया है, जिसमें प्रत्येक बच्चे को अपने निकटतम स्थित स्कूल में जाना चाहिए।

4. छात्रवृत्तियाँ – छात्रों की असमानता दूर करने के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रतिभाशाली छात्रों को प्रतियोगिता द्वारा चुनकर पब्लिक या सैनिक स्कूलों में प्रविष्ट किया जाये और उन्हें इतनी पर्याप्त छात्रवृत्ति दी जाये कि वे सम्पन्न घरों के बच्चों के समान ही रहन-सहन का स्तर बनायें रख कर पढ़ें।

5. अध्ययन केन्द्र – कहीं-कहीं बच्चों को घर पर पढ़ने की सुविधायें नहीं होतीं जैसे दिन को आने-जाने वालों का ताँता अथवा घर के कामों में फँसाव और रात को एकान्त एवं रोशनी की व्यवस्था का अभाव । ऐसे छात्रों के लिए यदि घर के पास ही अध्ययन केन्द्र खोले जा सकें तो छात्रों की कठिनाइयाँ दूर हो सकती हैं।

6. ‘पढ़ो और कमाओ’ की सुविधा-जो गरीब परन्तु परिश्रमी छात्र स्वावलम्बी होकर पढ़ाना चाहते हों उन्हें ऐसे कार्य उपलब्ध कराने चाहिए जिनके द्वारा वे अपनी पढ़ाई का खर्च अंशतः या पूर्णतः चला सकें।

7. पिछड़े वर्गों की शिक्षा- अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अतिरिक्त कुछ और भी पिछड़ी जातियाँ हैं जिनके बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उनमें से कुछ तो अपनी गरीबी के कारण, कुछ अज्ञान के कारण तथा कुछ सुविधाओं के अभाव में विद्यालय नहीं जा पाते। सर्वेक्षण द्वारा उनकी कठिनाइयों का पता लगाना चाहिए और उन्हें विद्यालयों में भेजने का उपाय करना चाहिए। कुछ परिवारों में शिक्षा के प्रति उपेक्षा का भाव होता है। ये सब सुविधायें देने पर भी अपनें बच्चों को स्कूल भेजना पसन्द नहीं करते। ऐसे माता-पिता को शिक्षा के लाभों से परिचित कराना और कुछ प्रभोलन देना आवश्यक है-जैसे दिन का भोजन और जलपान, नये कपड़े, पढ़ने की सामग्री इत्यादि ।

8. निःशुल्क शिक्षा – गरीब छात्रों के लिए सभी प्रकार की निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
उपसंहार – इसमें कोई सन्देह नहीं है कि शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए भारत सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा कई महत्वपूर्ण योजनायें जिनका विवरण ऊपर दिया गया है, चलाई जा रही हैं। उनके कुछ परिणाम भी अच्छे दृष्टिगोचर हुये हैं परन्तु अभी भी सतत् प्रयासों की आवश्यकता है।

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